Lilliput Village: ईरान का रहस्यमयी गांव, जिसे कहा जाता है प्राचीन ‘बौनों का शहर’
ईरान के लिलिपुट (Lilliput of Iran) कहे जाने वाले इस गांव मखुनिक (village Makhunik) में आज भी कई घर ऐसे हैं जहां सिर्फ 2 से 2.5 फीट कद के लोग ही जा सकते हैं....
Iran Lilliput Village: हमारे देश में विविधताओं की कमी नहीं है, यहां इंसान-पशु, शहर-गांव, खान-पान और रीति-रिवाजों में विविधता देखने को मिलती है। हमारे यहां भी कई ऐसे गांव हैं, जहां कुछ न कुछ अनोखा देखने को मिलता है। ऐसा ही एक गांव ईरान के पूर्वी तेहरान में भी है, जहां सिर्फ बौने लोग ही रहते हैं और इसी वजह से इस गांव का नाम लिलिपुट गांव (Lilliput village) पड़ा। दक्षिण खुरासान प्रांत की राजधानी बिरजंद से 143 किमी दूर और अफगानिस्तान की सीमा से सटे इस गांव का असली नाम मखुनिक (Makhunik) है। लोग इसे रहस्यमयी गांव भी कहते हैं, तो क्या आप जानते हैं कि यह गांव रहस्यमयी क्यों है और यहां बौने लोगों की मौजूदगी की वजह क्या है?
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक - According to BBC report
400 साल के एक बच्चे की ममी से पता चला इस गांव में लोगों की लंबाई नहीं बढ़ने का मुख्य कारण कुपोषण है। शोधकर्ताओं ने इस ममी पर शोध किया तो पता चला कि यहां लंबाई कम होने का कारण कुपोषण है क्योंकि एक समय था जब लोगों के पास आजीविका के पर्याप्त साधन नहीं हुआ करते थे। जानवरों को पालना मुश्किल था, ऐसे में लोगों को भरपेट खाना कहां से मिलेगा। यहाँ कुछ ही खजूर और दूसरे पेड़ थे।
इसके अलावा इस गांव की बनावट भी खास है। यहां के दरवाजे इतने छोटे हैं कि बिना झुके अंदर नहीं जा सकते। कई सदियों से यहां वास्तुकला और पर्यटन की दिशा में कोई काम नहीं किया गया है, जिसके कारण इस गांव का नवीनीकरण नहीं किया गया है और बहुत से लोग इसके बारे में नहीं जानते हैं।
लगभग एक सदी पहले यानी 1 हजार 500 साल पुराना गांव मखुनिक (Makhunik), गांव के कुछ निवासी केवल 1 मीटर लंबे थे, जो उस समय की औसत लंबाई से लगभग 50 सेमी कम था। 2005 में, इस क्षेत्र में एक 25-सेंटीमीटर लंबी ममी मिली थी, जिससे पता चला कि ईरान का यह सुदूर कोना, जिसमें मखुनिक (Makhunik) सहित 13 गाँव शामिल हैं, कभी एक प्राचीन 'बौने का शहर' था।
बता दें, सदियों से कुपोषण का शिकार रहा यह गांव आज कुछ हरा-भरा हो गया है. यहां के लोगों को खाने में चिकन और चावल मिल रहा है, जिससे उन्हें भरपूर पोषण मिल रहा है. इसका कारण यह है कि 20वीं सदी में यह संचार का साधन बन गया और यहां के निवासियों को पौष्टिक भोजन मिलने लगा।
बता दें, सदियों से कुपोषण का शिकार रहा यह गांव आज कुछ हरा-भरा हो गया है. यहां के लोगों को खाने में चिकन और चावल मिल रहा है, जिससे उन्हें भरपूर पोषण मिल रहा है. इसका कारण यह है कि 20वीं सदी में यह संचार का साधन बन गया और यहां के निवासियों को पौष्टिक भोजन मिलने लगा।
इस वजह से अब यहां के लोगों के शरीर की संरचना सामान्य लोगों की तरह होती जा रही है। हालाँकि, यहाँ अभी भी कुछ बौने हैं।
ये भी पढ़ें - Mobile Apps Game: 90 के दशक में खेले जाने वाले ये 10 खेल, दिला देंगे आपके बचपन की याद