लालची राजा की कहानी (The Story of Greedy King)
एक बार की बात है पाटलिपुत्र नाम का एक राज्य था। उस राज्य के राजा का नाम इन्द्रवर्मा था। पाटलिपुत्र में इन्द्रवर्मा नाम का एक राजा राज करता था। राजा इन्द्रवर्मा बड़ा ही लालची था। उसे अपनी पुत्री को छोड़कर उसे दूसरी कोई वस्तु संसार में प्यारी थी तो बस सोना ही प्यारा था।
एक बार की बात है पाटलिपुत्र नाम का एक राज्य था। उस राज्य के राजा का नाम इन्द्रवर्मा था। पाटलिपुत्र में इन्द्रवर्मा नाम का एक राजा राज करता था। राजा इन्द्रवर्मा बड़ा ही लालची था। उसे अपनी पुत्री को छोड़कर उसे दूसरी कोई वस्तु संसार में प्यारी थी तो बस सोना ही प्यारा था। वह रात में सोते – सोते भी सोना इकट्ठा करने का स्वप्न देखा करता था।
एक दिन राजा इन्द्रवर्मा अपने खजाने में बैठा सोने की ईटे और अशर्फियां गिन रहा था। अचानक वहां एक देवदूत आया उसने राजा से कहा - “इन्द्रवर्मा! तुम बहुत धनी हो।”
इन्द्रवर्मा ने मुंह लटकाकर उत्तर दिया – “मैं धनी कहां हूं मेरे पास तो यह बहुत थोड़ा सोना है।”
देवदूत बोला – “तुम्हें इतने सोने से भी संतोष नहीं है कितना सोना चाहिए तुम्हें।”
राजा ने कहा – “मैं तो चाहता हूं कि मैं जिस वस्तु को हाथ से स्पर्श करूं वही सोने की हो जाए।”
देवदूत हंसा और बोला – “अच्छी बात है! कल सवेरे से तुम जिस वस्तु को छूवोगे वह सोने की हो जाएगी।”
उस रात राजा इन्द्रवर्मा को नींद नहीं आई। वह सुबह उठा उसने और कुर्सी पर हाथ रखा और वह सोने की हो गई। एक मेज को छुआ और वह भी सोने की बन गई। राजा इन्द्रवर्मा प्रसन्ता के मारे उछलने और नाचने लगा। वह पागलों की भांति दौड़ता हुआ अपने बगीचे में गया और पेड़ों को छूने लगा उसके साथ उसने फूल, पत्ते, डालिया, और गमलों को भी छुआ और वह सब सोने के हो गए। सब चमाचम चमकने लगा। इन्द्रवर्मा के पास हर जगह सोना ही सोना था।
दौड़ते-उछलते में इन्द्रवर्मा थक गया। उसे अभी तक यह पता ही नहीं लगा था कि उसके कपड़े भी सोने के होकर बहुत भारी हो गए हैं। वह प्यासा था और भूख भी उसे लगी थी। बगीचे से अपने राजमहल लौटकर एक सोने की कुर्सी पर बैठ गया । एक नौकर ने उसके आगे भोजन और पानी लाकर रख दिया। लेकिन जैसे ही उसने भोजन को हाथ लगाया वह भोजन सोने का बन गया। उसने पानी पीने के लिए गिलास उठाया तो गिलास और पानी सोना हो गया । इन्द्रवर्मा के सामने सोने की रोटियां, सोने के चावल, सोने के आलू आदि रखे थे। वह भूखा था -प्यासा था सोना चबाकर उसकी भूख नहीं मिट सकती थी ।
इन्द्रवर्मा रो पड़ा उसी समय उसकी पुत्री खेलते हुए वहां आई। अपने पिता को रोते हुए देखकर पिता की गोद में चढ़ कर उसके आंसू पहुंचने लगी । इन्द्रवर्मा ने पुत्री को अपनी छाती से लगा लिया, और वह भी सोने की एक मूर्ति समान बन गयी थी। बेचारा इन्द्रवर्मा सिर पीट-पीट कर रोने लगा। देवता को दया आ गई वह फिर प्रकट हुए। उन्हें देखते ही इन्द्रवर्मा उसके पैरों पर गिर पड़ा और “गिड़गिड़ाकर प्रार्थना करने लगा अपना वरदान वापस ले लीजिए।”
देवता ने पूछा – “इन्द्रवर्मा अब तुम्हें सोना नहीं चाहिए। अब बताओ एक गिलास पानी मूल्यवान है या सोना, कपड़ा, रोटी मूल्यवान है या सोना।”
इन्द्रवर्मा ने हाथ जोड़कर कहा – “मुझे सोना नहीं चाहिए मैं जान गया हूं कि मनुष्य को सोना नहीं चाहिए। सोने के बिना मनुष्य का कोई काम नहीं अटकता। एक गिलास पानी और एक टुकड़े रोटी के बिना मनुष्य का काम नहीं चल सकता। अब सोने का लोभ नहीं करूंगा।
देवदूत ने एक कटोरे में जल दिया और कहा – “इसे सब पर छिड़क दो ।”
इन्द्रवर्मा ने वह जल अपनी मेज पर, कुर्सी पर, भोजन पर, पानीपर , बगीचे के पेड़ों पर और अपनी पुत्री पर छिड़क दिया। सब पदार्थ जैसे थे, वैसे ही हो गए। फिर राजा को सोने का लोभ नहीं हुआ और उसे अपनी पुत्री से ज्यादा कुछ प्यारा नहीं था।
कहानी से सीख: इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि मनुष्य चाहे कितना भी अमीर और कितना भी गरीब हो उसे कभी भी लालच नहीं करना चाहिए। अत्यधिक लालच करने से उसके पास जो होता है वह उसे भी गवा देता है।