ऐसा शिव मंदिर जो दिन में दो बार गायब हो जाता है।
श्री स्तम्भेश्वर महादेव मंदिर। जगह के बारे में: अठारह हिंदू पुराणों में से एक, जहां देवताओं ने तारकासुर को मारने के लिए कार्तिकेय की महिमा की प्रशंसा की, वहीं कार्तिकेय स्वयं अपने कृत्य से दुखी थे। उन्होंने देवताओं से कहा- 'मुझे तारकासुर को मारने के लिए खेद है क्योंकि वह भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था।
स्तंभेश्वर महादेव मंदिर
यह मंदिर अरब सागर के बीच कैम्बे तट पर स्थित है 150 साल पहले खोजे गए इस मंदिर का उल्लेख महाशिव पुराण के रूद्र सहिता मे मिलता है इस मंदिर के शिवलिंग का आकार चार फुट ऊंचा और 2 फुट के व्यास वाला है ! महादेव का यह स्तंभेश्वर मंदिर सुबह और शाम दिन मे दो बार पल भर के लिए गायब हो जाता है और कुछ देर बाद उसी जगह पर वापिस भी आ जाता है जिसका कारण अरब सागर मे उठने वाले ज्वार और भाटा को बताया जाता है इस कारण श्रद्धालु मंदिर के शिवलिंग के दर्शन तभी कर सकते है जब समुन्द्र की लहरे पूरी तरह शांत हो ज्वर के समय शिवलिंग पूरी तरह से जल में समाहित हो जाता है यह प्रक्रिया प्राचीन समय से ही चली आ रही है यह आने वाले सभी श्रद्धलु को एक खास पर्चे बांटे जाते है जिसमें ज्वर भाटा आने का समय लिखा होता है ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं को परेशानियों का सामना न करना पड़े !
मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा
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इसके अलावा इस मंदिर के साथ एक पौराणिक कथा भी जुडी हुई है कथा के अनुसार राक्षस तारकासुर ने भगवान् शिव की कठोर तपस्या की एक दिन भगवान् शिव तारकासुर की तपस्या से प्रसन्न होकर उसके सामने प्रकट हुए और उसे वरदान मांगने को कहा उसके बाद वरदान के रूप में तारकासुर ने भगवान शिव से माँगा की उसे सिर्फ शिव जी का पुत्र ही मार सकेगा और वो भी छे दिन की आयु का शिव जी ने यह वरदान तारकासुर को दे दिया और वो वहा से अंतर ध्यान हो गए इधर वरदान मिलते ही तारकासुर तीनो लोक में हा हा कर मचाने लगा जिससे दायर कर सभी देवता लोग भगवान शिव के पास गए देवताओं की विनती पर भगवान् शिव ने उसी समय अपनी शक्ति से श्वेत पर्वत कुण्ड से छे मस्तक चार आँख और बारहा आँख वाले एक पुत्र को उत्पन किया जिसका नाम कार्तिके रखा गया जिसके पश्चात कार्तिके ने छे दिन की उम्र में तारकासुर का वध किया लेकिन जब कार्तिके को पता चला कि तारकासुर भगवान् शंकर का भक्त था तो वह काफी परेशान हो गए फिर भगवान् विष्णु ने कार्तिके से कहा उस स्थान पर एक शिवालय बनवा दे ! इससे उनका मन शांत होगा फिर कार्तिके ने ऐसा ही किया फिर सभी देवताओं ने मिलकर वही सागर संगम तीर्थ पर विश्वनंद स्तंभ की स्थापना की जिसे आज स्तंभेश्वर तीर्थ स्थान के नाम से जाना जाता है !
अरब सागर मे स्थित है
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यह मंदिर गुजरात के भावनगर में कोलियाक तट से तीन किलोमीटर अंदर अरब सागर मे स्थित है रोज अरब सागर की लहरे यहाँ के शिवलिंगों का जल अभिषेक करती है लोग पैदल चलकर ही इस मंदिर में दर्शन करने जाते है इसके लिए उन्हें ज्वर उतरने तक का इंतज़ार करना पड़ता है ज्वार के समय सिर्फ मंदिर का खम्बा और पातका ही दिखाई देता है ! जिसे देखकर यह अंदाज़ा भी नहीं लगाया जा सकता है कि समुन्द्र के नीचे भगवान शिव का एक प्राचीन मंदिर भी स्थित है !
यह मंदिर महाभारत के समय का बताया जाता है ऐसा माना जाता है कि महाभारत युद्ध मे पांडवों ने कौरवों का वध कर युद्ध जीता पर युद्ध समाप्ति के बाद पांडवो को ज्ञात हुआ की उसने अपने ही सगे संबंधियों की हत्या करके महा पाप किया है इस महा पाप से छुटकारा पाने के लिए पांडव भगवान श्री कृष्ण के पास गए भगवान् श्री कृष्ण ने पांडवों को पाप से मुक्ति के लिए एक काला ध्वजा और एक काली गाय सोपि और पांडवो को गाय का अनुसरण करने को कहा और कहा जब गाय और ध्वजे का रंग काले से सफ़ेद हो जाये तो समझलेना की तुम सबको पाप से मुक्ति मिल गई है साथ ही भगवान श्री कृष्ण ने पांडवों से यह भी कहा कि जिस जगह यह चमत्कार होगा वही पर तुम भगवान शिव की तपस्या भी करना पांचो भाई श्री कृष्ण के कहे अनुसार काली ध्वजा हाथ मे लिए काली गाय के पीछे पीछे चलने लगे इसी क्रम मे वो सब अलग - अलग जगह पर गए लेकिन गाय और ध्वजा का रंग नहीं बदला पर जब वो गुजरात मे स्तिथ कोलियाक तट पर पहुंचे तो गाय और ध्वजा का रंग चेंज हो गया इससे पांचों पांडव भाई बड़े खुश हुए और वहीं पर भगवन शिव का ध्यान करते हुए तपस्या करने लगे भगवान भोले नाथ उनकी तपस्या से बहुत प्रसन्न हुए और पांचों पांडव को लिंग रूप में अलग अलग दर्शन दिए !
पांच शिवलिंग
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वही पांचो शिवलिंग अभी भी वहीं पर स्थित है पांचो शिवलिंग के सामने नंदी की प्रतिमा भी स्थित है पांचो शिवलिंग एक बरगाकर चबूतरे पर बने हुए है तथा एक कोली अंख समुन्द्र तट से पूर्व की ओर तीन किलोमीटर अंदर अरब सागर मे स्थित है ! इस चबूतरे के ऊपर एक छोटा सा पानी का तालाब भी है जिसे पांडव तालाब भी कहते है ! इसमें श्रद्धालु सबसे पहले अपने हाथ और पाव को धोते है और फिर शिवलिंगो की पूजा अर्चना करते है क्यूंकि यहाँ पर आकर पांडव को अपने भाइयो की हत्या कलंक से मुक्ति मिली थी इसलिए इसे निष्कलंक महादेव मन्दिर कहते है भादो के महीने में आमावस मैं यहाँ मेला भी लगता है जिसे भदर्वी भी कहा जाता है प्र्तेक आमावस जे दिन यहा भगतो की बहुत भीड़ रहती है लोगो की ऐसी मान्यता है की अगर हम प्रिये जनों की चिता की आग शिवलिंग पर लगाकार जल मे प्रवाहित करदे तो उनको मोक्ष मिल जाता है मंदिर मे भगवान शिव को राख, दूध, दही और नारियल अर्पित किये जाते है !