जानिए अजेय पांडवों की 5 अनसुनी कहानियां
महाभारत के आदिपर्व के अनुसार एक दिन राजा पांडु आखेट के लिए निकलते हैं। जंगल में दूर से देखने पर उनको एक हिरण दिखाई देता है। वे उसे एक तीर से मार देते हैं।
पांडव पंचमी
दीपावली के बाद शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को पांडव पंचमी के रूप में मनाया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण के आदेश से पांडवों ने कौरवों को जिस दिन हराया था, उस दिन पंचमी थी। इसीलिए तभी से पांचों पांडवों की पूजा होती पांडव पंचमी मनाई जाती है। मान्यता है कि पांडव जैसे पुत्रों की कामना हेतु इस दिन श्रीकृष्ण सहित पांडवों की पूजा की जाती है। आओ जानते हैं पांडवों की 5 अनजानी कहानियां।
1. पांडव जन्म कथा :
महाभारत के आदिपर्व के अनुसार एक दिन राजा पांडु आखेट के लिए निकलते हैं। जंगल में दूर से देखने पर उनको एक हिरण दिखाई देता है। वे उसे एक तीर से मार देते हैं। वह हिरण एक ऋषि किंदम निकलते हैं तो अपनी पत्नी के साथ मैथुनरत थे। वे ऋषि मरते वक्त पांडु को शाप देते हैं कि तुम भी मेरी तरह मरोगे, जब तुम मैथुनरत रहोगे। इस शाप के भय से पांडु अपना राज्य अपने भाई धृतराष्ट्र को सौंपकर अपनी पत्नियों कुंती और माद्री के साथ जंगल चले जाते हैं। जंगल में वे संन्यासियों का जीवन जीने लगते हैं, लेकिन पांडु इस बात से दुखी रहते हैं कि उनकी कोई संतान नहीं है और वे कुंती को समझाने का प्रयत्न करते हैं कि उसे किसी ऋषि के साथ समागम करके संतान उत्पन्न करनी चाहिए।
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लाख समझाने के बाद तब कुंति मंत्र शक्ति के बल पर एक-एक कर 3 देवताओं का आह्वान कर 3 पुत्रों को जन्म देती है। धर्मराज से युधिष्टिर, इंद्र से अर्जुन, पवनदेव से भीम को जन्म देती है। कुंती उसी मंत्र को माद्री को भी सिखा देती है। माद्री भी इसी मंत्र शक्ति के बल पर अश्विन कुमारों का आह्वान कर नकुल और सहदेव को जन्म देती हैं। इसका मतलब यह कि पांडु पुत्र असल में पांडु पुत्र नहीं थे। इसके पहले उसी तरह कुंती अपनी कुंवारी अवस्था में सूर्यदेव का आह्वान कर कर्ण को जन्म देती हैं इस तरह कुंति के 4 और माद्री के 2 पुत्र मिलाकर कुल 6 पुत्र होते हैं।
2. खांडव वन में मिले दिव्य हथियार :
पांडवों को धृतराष्ट्र ने राज्य करने हेतु खांडव वन दे दिया था जहां का महल खंडहर बन चुका था और जो चारों ओर जंगलों से घिरा था। श्रीकृष्ण और अर्जुन वहां जाते हैं जहां वे इंद्रप्रस्थ का निर्माण करना चाहते हैं। वे विश्वकर्मा की सलाह पर रावण की पत्नी मंदोदरी के पिता मयासुर को निर्माण का कार्य सौंपते हैं। मयासुर उन्हें खंडहरों में ले जाता है। खंडहर में एक रथ रखा होता। मयासुर कहता है कि हे श्रीकृष्ण, यह सोने का रथ पूर्वकाल के महाराजा सोम का रथ है। यह आपको आपकी मनचाही जगह पर ले जाने के लिए समर्थ है...। उस रथ में एक गदा रखी होती है जिसे दिखाते हुए मयासुर कहता है कि ये कौमुद की गदा है जिसे पांडव पुत्र भीम के अलावा और कोई उठा नहीं सकता है। इसके प्रहार की शक्ति अद्भुत है। गदा दिखाने के बाद मयासुर कहता है कि यह गांडीव धनुष है। यह अद्भुत और दिव्य धनुष है। इसे दैत्यराज वृषपर्वा ने भगवान शंकर की आराधना से प्राप्त किया था।
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भगवान श्रीकृष्ण उस धनुष को उठाकर अर्जुन को देते हुए कहते हैं कि इस दिव्य धनुष पर तुम दिव्य बाणों का संधान कर सकोगे। इसके बाद मयासुर अर्जुन को अक्षय तर्कश देते हुए कहता है कि इसके बाण कभी समाप्त नहीं होते हैं। इसे स्वयं अग्निदेव ने दैत्यराज को दिया था। इस बीच विश्वकर्मा कहते हैं कि आज से इस समस्त संपत्ति के आप अधिकारी हो गए हैं पांडुपुत्र। अंत में श्रीकृष्ण कहते हैं कि मयासुर, तुम्हारी इस कृपा का हम प्रतिदान तो नहीं दे सकते लेकिन हम वचन देते हैं कि जब भी तुम हमें संकट काल में स्मरण करोगे, तो मैं और अर्जुन तुरंत ही वहां पहुंच जाएंगे। मयासुर यह सुनकर प्रसन्न हो जाता है। बाद में विश्वकर्मा और मयासुर मिलकर इंद्रप्रस्थ नगर को बनाने का कार्य करते हैं।
3. यक्ष चारों पांडवों को जीवित कर देता है :
जब पाण्डव दूसरे वनवास के समय वन-वन भटक रहे थे तब एक यक्ष से उनकी भेंट हुई जिसने युधिष्ठिर से विख्यात 'यक्ष प्रश्न' किए थे। पांडवजन अपने तेरह-वर्षीय वनवास के दौरान वनों में विचरण कर रहे थे। तब उन्होंने एक बार प्यास बुझाने के लिए पानी की तलाश की। पानी का प्रबंध करने का जिम्मा प्रथमतः सहदेव को सौंप गया। उन्हें पास में एक जलाशय दिखा जिससे पानी लेने वे वहां पहुंचे। जलाशय के स्वामी अदृश्य यक्ष ने आकाशवाणी के द्वारा उन्हें रोकते हुए पहले कुछ प्रश्नों का उत्तर देने की शर्त रखी। सहदेव उस शर्त और यक्ष को अनदेखा कर जलाशाय से पानी लेने लगे। तब यक्ष ने सहदेव को निर्जीव कर दिया। सहदेव के न लौटने पर क्रमशः नकुल, अर्जुन और फिर भीम ने पानी लाने की जिम्मेदारी उठाई। वे उसी जलाशय पर पहुंचे और यक्ष की शर्तों की अवज्ञा करने के कारण निर्जीव हो गए। अंत में चिंतातुर युधिष्ठिर स्वयं उस जलाशय पर पहुंचे। अदृश्य यक्ष ने प्रकट होकर उन्हें आगाह किया और अपने प्रश्नों के उत्तर देने के लिए कहा। युधिष्ठिर ने धैर्य दिखाया। उन्होंने न केवल यक्ष के सभी प्रश्न ध्यानपूर्वक सुने अपितु उनका तर्कपूर्ण उत्तर भी दिया जिसे सुनकर यक्ष संतुष्ट हो गया और उसने सभी पांडवों को पुन: जीवित कर दिया।
4. पुनर्जन्म :
भविष्य पुराण के अनुसार शिवजी से युद्ध करने के कारण पांडवों को कलियुग में पुनः जन्म लेना पड़ा था। कहते हैं कि जब आधी रात के समय अश्वत्थामा, कृतवर्मा और कृपाचार्य ये तीनों पांडवों के शिविर के पास गए और उन्होंने मन ही मन भगवान शिव की आराधना कर उन्हें प्रसन्न कर लिया। इस पर भगवान शिव ने उन्हें पांडवों के शिविर में प्रवेश करने की आज्ञा दे दी। जिसके बाद अश्वत्थामा में पांडवों के शिविर में घुसकर शिवजी से प्राप्त तलवार से पांडवों के सभी पुत्रों का वध कर दिया और वहां से चले गए। जब पांडवों को इसके बारे में पता चला तो वे भगवान शिव से युद्ध करने के लिए पहुंच गए। जैसे ही पांडव शिवजी से युद्ध करने के लिए उनके सामने पहुंचे उनके सभी अस्त्र-शस्त्र शिवजी में समा गए और शिवजी बोले तुम सभी श्रीकृष्ण के उपासक को इसलिए इस जन्म में तुम्हें इस अपराध का फल नहीं मिलेगा, लेकिन इसका फल तुम्हें कलियुग में फिर से जन्म लेकर भोगना पड़ेगा। भगवान शिव की यह बात सुनकर सभी पांडव दुखी हो गए और इसके विषय में बात करने के लिए श्रीकृष्ण के पास पहुंच गए, तब श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया कि कौन-सा पांडव कलियुग में कहां और किसके घर जन्म लेगा।
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कलियुग में किसका जन्म कहां हुआ, जानिए
1.युधिष्ठिर जन्म वत्सराज नाम के राजा के पुत्र के रूप में हुआ। उनका नाम मलखान था।
2.भीम का जन्म वीरण नाम से हुआ जो वनरस नाम के राज्य के राजा बने।
3.अर्जुन का जन्म परिलोक नाम के राजा के यहां हुआ। उनका नाम ब्रह्मानन्द था।
4.नकुल का जन्म कान्यकुब्ज के राजा रत्नभानु के यहां हुआ, उनका नाम लक्ष्मण था।
5.सहदेव ने भीमसिंह नामक राजा के घर में देवीसिंह के नाम से जन्म लिया।
6.दानवीर कर्ण ने तारक नाम के राजा के रूप में जन्म लिया।
7.कहते हैं कि धृतराष्ट्र का जन्म अजमेर में पृथ्वीराज के रूप में हुआ और द्रोपदी ने उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिए था जिसका नाम वेला था।
5. पांडवों का स्वर्गारोहण :
महाभारत के युद्ध की समाप्ति के बाद पांचों पांडव अपना राजपाट परीक्षित को सौंपकर जब स्वर्ग की कठिन यात्रा कर रहे थे तब इस यात्रा में द्रौपदी भी उनके साथ गई थी। पांचों पांडव, द्रौपदी तथा एक कुत्ता आगे चलने लगे।
एक जगह द्रौपदी लड़खड़ाकर गिर पड़ी। द्रौपदी को गिरा देख भीम ने युधिष्ठिर से पूछा कि द्रौपदी ने कभी कोई पाप नहीं किया, तो फिर क्या कारण है कि वह नीचे गिर पड़ी? युधिष्ठिर ने कहा- द्रौपदी हम सभी में अर्जुन को अधिक प्रेम करती थीं। इसलिए उसके साथ ऐसा हुआ।
थोड़ी देर बाद सहदेव भी गिर पड़े। युधिष्ठिर ने कहा- सहदेव किसी को अपने जैसा विद्वान नहीं समझता था, इसी दोष के कारण गिरना पड़ा।
कुछ देर बाद नकुल भी गिर पड़े। भीम के पूछने पर युधिष्ठिर ने बताया कि नकुल को अपने रूप पर बहुत अभिमान था।
थोड़ी देर बाद अर्जुन भी गिर पड़े। युधिष्ठिर ने भीम से कहा- अर्जुन को अपने पराक्रम पर अभिमान था। अपने अभिमान के कारण ही अर्जुन की आज यह हालत हुई है।
ऐसा कहकर युधिष्ठिर आगे बढ़ गए।
थोड़ी आगे चलने पर भीम भी गिर गए। तब भीम ने गिरते वक्त युधिष्ठिर से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि तुम खाते बहुत थे और अपने बल का झूठा प्रदर्शन करते थे। इसलिए तुम्हें आज भूमि पर गिरना पड़ा।
यह कहकर युधिष्ठिर आगे चल दिए। केवल वह कुत्ता ही उनके साथ चलता रहा। युधिष्ठिर कुछ ही दूर चले थे कि उन्हें स्वर्ग ले जाने के लिए स्वयं देवराज इंद्र अपना रथ लेकर आ गए। युधिष्ठिर ने कहा कि यह कुत्ता भी मेरे साथ जाएगा लेकिन इंद्र ने ऐसा करने से मना कर दिया। काफी देर समझाने पर भी जब युधिष्ठिर बिना कुत्ते के स्वर्ग जाने के लिए नहीं माने तो कुत्ते के रूप में यमराज अपने वास्तविक रूप में प्रकट हो गए। युधिष्ठिर को अपने धर्म में स्थित देखकर यमराज खुश हुए। इसके बाद इंद्र और युधिष्ठिर रथ में बैठाकर स्वर्ग की ओर निकल पड़े।